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Education is fun for all ages

आनंद वन में मोकू नामक एक शैतान बंदर रहता था। वह इतना झगड़ालू था कि सभी उससे उलझने से बचते थे। वह इस कारण अपने आप पर और इतराने लगा। एक दिन मोकू जंगल में खाने की खोज में इधर-उधर भटक रहा था, तभी उसकी नजर एक विशाल आम के पेड़ पर पड़ी। उस पर पीले रंग के छोटे-छोटे फूल खिले थे, हरे-हरे आम के केरी के गुच्छे भी लटक रहे थे। स्वीटी कोयल उसकी एक डाल पर बैठकर मधुर आवाज में गाना गा रही थी। मोकू ने मन ही मन सोचा, ‘अरे वाह, यह आम का पेड़ तो कुछ दिनों में फलों से भर जाएगा, तो क्यों न यहीं अपना बसेरा बनाया जाए। वह फौरन उछलकर पेड़ पर चढ़ गया और स्वीटी पर लगभग चिल्लाता हुआ बोला, “बंद करो गाना-बजाना। आज से यह पेड़ मेरा घर है। भागो यहां से।” स्वीटी हकलाते हुए बोली, “लेकिन मोकू भैया, पहले तो मैं यहां आई थी।” स्वीटी के ऐसा बोलते ही मोकू ने उसे गुस्से से घूरा और कहा, “दिखाओ जरा अपना घोंसला। मैं तो जानता हूं तुम खुद अपने अंडे कौए के घोंसले में देती हो। बड़ी आई, मुझसे बहस करने वाली।” मोकू के मुंह से ऐसी बातें सुनकर स्वीटी बहुत दुखी हुई और वह रोते हुए दूसरे पेड़ पर चली गई। तभी पास के अमरूद के पेड़ पर रहने वाली चिंटू गिलहरी बोली, “मोकू, तुम्हें स्वीटी से ऐसे नहीं कहना चाहिए था। हम सभी में कोई न कोई कमी तो होती ही है, साथ ही कुछ अच्छे गुण भी तो होते हैं। हम में से कोई स्वीटी जैसा गा सकता है भला?” लेकिन मोकू के कान में जूं तक न रेंगी। वह उलटा चिंटू पर बरस पड़ा, “तुम मुझे मत समझाओ। यह पेड़ अब से मेरा है और इसके फल भी।” चिंटू मुसकुराकर बोला, “विनाश काले विपरीत बुद्धि।” मोकू उसे अनदेखा कर पेड़ पर सुस्ताने लगा। शोर सुनकर आसपास रहने वाले पिंकू खरगोश, दीना कौआ और रॉकी चूहा भी अपने घरों से बाहर निकल आए। “छोड़ो चिंटू, कीचड़ में पत्थर फेंकने पर छींटे हमारे ऊपर ही पड़ते हैं।” रॉकी ने कहा। “सो तो है। चलो, अपना-अपना काम करें।” चिंटू भी बोला, तो सभी अपने-अपने घर चले गए। वे सब मिल-जुलकर रहते, पर मोकू हमेशा अलग-थलग ही रहता। मोकू के भी मजे ही मजे थे। कुछ ही दिनों में पेड़ आम से लद गए थे। वह रोज मीठे रसीले आम बड़े चाव से खाने लगा, साथ ही किसी को भी पेड़ के आसपास फटकने नहीं देता था। कुछ महीनों बाद आम का मौसम खत्म होने लगा। पेड़ पर और फल आने रुक गए थे। मोकू परेशान होकर पेड़ से बोला, “मुझे भूख लगी है और आम दो।” पेड़ झुंझलाकर बोला, “अब बस भी करो। मैं थक गया हूं और सोना चाहता हूं। मैं फल अब अगले साल ही दूंगा।” पेड़ फिर सुस्ताने लगा। मोकू के कुछ दिन तो किसी तरह निकल गए, पर अब पेड़ पर एक फल भी न था और उसके पेट में चूहे दौड़ने लगे। उसने देखा पास के सेब, संतरे और नाशपाती के पेड़ फलों से लदे थे। दूर बेलों पर हरे और काले अंगूर भी दिख रहे थे। मोकू के मुंह में पानी भर आया । रॉकी, चिंटू और स्वीटी मजे से एक पेड़ से, दूसरे पेड़ पर आ-जा रहे थे और उनके फल कुतर-कुतर के खा रहे थे। मोकू को पहली बार अपने कहे पर पछतावा हो रहा था। ‘हाय, मैंने एक पेड़ पर हक जमाकर बहुत बड़ी गलती कर दी।’ लेकिन अभी भी उसका घमंड आगे आ रहा था। वह किसी भी हालत में झुकने को तैयार नहीं था। मोकू एक दिन हिम्मत करके संतरे के पेड़ के नीचे पहुंचा। उसमें रहने वाले सभी पक्षी और पिंकू खरगोश तन के खड़े हो गए। सबको एक साथ देखकर मोकू थोड़ा घबराया, पर आदत के अनुसार रोब से बोला, “मुझे भूख लगी है, इसलिए संतरे खाने हैं।” झट से पिंकू बोला, “भूल गए तुम्हारी बातें, इस पेड़ में तो हम रहते हैं, तो यह पेड़ और फल भी हमारे हुए। हम तुम्हें भला क्यों दें?” संतरे और सेब के पेड़ों ने भी हामी भरी, तो मोकू इतना सा मुंह लेकर वापस अपने पेड़ के नीचे आ गया। ‘कल मैं दूसरे वन जाऊंगा।’ मोकू सोचने लगा। तभी किसी ने उसे बुलाया। वह चौंककर इधर-उधर देखने लगा। अचानक उसकी नजर चिंटू पर पड़ी। उसके हाथों में ढेर सारे फल थे। चिंटू बोला, “लो खाओ मोकू, ये मैंने तुम्हारे लिए ही लिए हैं। तुम बड़े कमजोर लग रहे हो।” मोकू ने गौर से देखा, चिंटू के चेहरे पर किसी प्रकार का व्यंग्य न था। वह सहज तरीके से मुसकरा रहा था। मोकू ने चिंटू को गले लगाया और अपने किए की माफी मांगी। देखते ही देखते रॉकी, पिंकू, स्वीटी सभी उसे घेरकर खड़े हो गए। सभी उसे मित्र बनाने के लिए आतुर थे। मोकू भी जान गया कि मिल-जुलकर रहने में ही भलाई है। ’

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