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कानन वन में मोनू बंदर ने मिठाइयों की एक शानदार दुकान खोली। उसने अपनी दुकान का नाम रखा, ‘मोनू स्वीट्स होम’। मोनू स्वीट्स होम के खुल जाने से कानन वन वाले बहुत खुश थे। एक दिन मोनू बंदर यानी मोनू हलवाई अपनी दुकान पर मिठाइयां बना रहा था। तभी वहां चीनू खरगोश दो किलो बर्फी लेने आ गया। उसने इधर-उधर देखने के बाद मोनू से कहा, “मोनू हलवाई, तुम भी रहे बेवकूफ के बेवकूफ। इतनी बड़ी मिठाइयों की दुकान तुमने कानन वन में खोली है और नाम रखा है ‘मोनू स्वीट्स होम।’ अगर सामने यह भी लिखवा देते कि ‘हमारे यहां पर शुद्घ देशी घी की ताजी मिठाइयां मिलती हैं, तो कुछ अलग ही बात होती।” चीनू की बात मोनू को समझ आ गई। वह बोला, “चीनू भैया धन्यवाद। इतना बढि़या सुझाव तुमने दिया है। कल ही लिखवा दूंगा।” दूसरे दिन कालू लंगूर पेंटर को बुलवाकर मोनू ने दुकान के बाहर लिखवा दिया , ‘हमारे यहां पर सभी प्रकार की शुद्घ देशी घी में बनी ताजी मिठाइयां मिलती हैं।’ इसके एक दिन बाद ही सोनू भालू वहां से गुजरा। उसने मोनू की दुकान देखी, तो रुक गया। चारों तरफ नजरें दौड़ाईं और फिर बोला, “अरे इतनी लंबी-चौड़ी बात लिखवाने की क्या जरूरत है कि ‘हमारे यहां पर सभी प्रकार की शुद्घ देशी घी में बनी ताजी मिठाइयां मिलती हैं’। सिर्फ यह लिखवाना चाहिए ‘सभी प्रकार की शुद्घ देशी घी में बनी ताजी मिठाइयां मिलती हैं।’ हमारे यहां को हटा दो। तुम्हारे यहीं तो मिलेगी, तो इन शब्दों की क्या जरूरत?” “ठीक है भैया। अभी मिटवा देता हूं।” मोनू ने सोनू की बात मानते हुए कालू से कहकर ‘हमारे यहां’ लिखा मिटा दिया। दो-चार दिन बाद चमेली लोमड़ी दुकान पर जलेबी लेने आई, तो उसने भी उस वाक्य को पढ़ा। फिर बोली, “चाचा, तुम्हारे यहां तो वैसे भी सभी प्रकार की मिठाइयां मिलती हैं। केवल यह लिखा रहना चाहिए ‘शुद्घ देशी घी में बनी ताजी मिठाइयां मिलती हैं’।” चमेली लोमड़ी ने अपनी राय देते हुए कहा। मोनू को उसकी बात भी समझ आ गई। उसने तुरंत कालू लंगूर को बुलवाया और ‘सभी प्रकार की’ लिखा मिटा दिया। मोनू सोच रहा था कि मेरे कितने शुभचिंतक हैं यहां। दस-पंद्रह दिन बाद जीतू जिराफ का वहां आना हो गया। उसने भी दुकान पर लिखा वाक्य पढ़ा और लंबी गरदन मोड़ते हुए बोला, ‘जब बनाते ही हो शुद्घ देशी घी में, तो यह लिखने की क्या जरूरत? इसे हटाओ और बस यह लिखा रहने दो कि ‘ताजी मिठाइयां मिलती हैं’।” जिराफ ने अपनी राय देते हुए उसे समझाया। मोनू हलवाई को जिराफ दादा की बात अच्छी लगी। उसने फिर कालू लंगूर को बुलवाया और मिटा दिया ‘शुद्घ देशी घी में बनी’ शब्दों को। अब उसकी दुकान पर केवल इतना लिखा रह गया था ‘ताजी मिठाइयां मिलती हैं’। लगभग एक महीने बाद उछलता-कूदता चीलू चीता आ गया। सामने ‘ताजी मिठाइयां मिलती है’ लिखा पढ़कर माथा ठनक गया। वह गुर्राते हुए बोला, “मोनू, तुम बासी मिठाइयां भी बेचते हो क्या?” “नहीं-नहीं, चीता भाई। रोज के रोज ताजी मिठाइयां बनाता हूं।” मोनू ने डरते हुए कहा। “तो फिर ‘ताजी मिठाइयां’ शब्द क्यों लिखवाया है यहां? लिखवाना है, तो बस लिखवाओ कि ‘मिलती हैं।” मोनू ने तुरंत ‘ताजी मिठाइयां’ शब्द हटवा दिया। इसके बाद वहां रह गया ‘मिलती हैं’। कुछ देर बाद ही सियार वहां आ पहुंचा। उसने मोनू से कहा, “अरे मोनू, ‘मिलती हैं’ का क्या मतलब?” “मोनू बोला, ‘सियार भाई, मिठाइयां मिलती हैं।” “अरे, हलवाई की दुकान पर मिठाइयां नहीं मिलेंगी, तो क्या सब्जी मिलेगी? मिटा दो इसे तुरंत।” मोनू को उसकी बात भी ठीक लगी। उसने कालू पेंटर से कहकर ‘मिलती हैं भी साफ करवा दिया। अब वहां ‘मोनू स्वीट्स होम’ के अलावा कुछ नहीं लिखा था। मोनू ने राहत की सांस ली। अगले ही दिन गज्जू हाथी अपनी सूंड़ हिलाता हुआ मोनू की दुकान पर आ धमका। उसने मोनू के स्वीट्स होम की काफी तारीफ करते हुए कहा, “वाह, भई वाह। हलवाई की दुकान हो, तो मोनू जैसी। मजा आ गया। लेकिन…।” “क्या हुआ गज्जू दादा?” मोनू ने पूछा। “अरे, इतनी बढि़या और इतनी शानदार दुकान के सामने सुंदर-सुंदर अक्षरों में लिखवाना चाहिए, ‘हमारे यहां पर शुद्घ देशी घी से बनी ताजी मिठाइयां मिलती हैं’।” इतना सुनते ही मोनू हलवाई बेहोश हो गया। काफी देर में होश आने के बाद उसने काफी सोच-विचार करने के बाद दुकान पर लिखवाया, “यहां फालतू की राय देना मना है।”