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माधो जंगल में लकड़ियां बीन रहा था। अचानक अपने गांव से आग की लपटें उठती देखकर वह घबरा उठा। पड़ोसी राजा को अपने किले में काम कराने के लिए गुलामों की आवश्यकता थी। उस समय उसके सैनिक ही गांव वालों को गुलाम बनाकर ले जा रहे थे। माधो जान बचाने के लिए घने जंगल में भाग गया। दिन बीतने पर माधो गांव लौटा, लेकिन वहां कोई नहीं था। उसके माता-पिता को भी निर्दयी सैनिक पकड़कर ले गए थे। माधो क्रोध से उबल पड़ा। वह राजा के किले की ओर चल दिया। वह किसी तरह गांव वालों को छुड़ाना चाहता था। किसी तरह छिपता हुआ माधो किले के अंदर पहुंचगया। गांव वालों के साथ उसके माता-पिता तपती धूप में राजा के खेतों में काम कर रहे थे। पानी मांगने पर सिपाही उन पर कोड़े बरसाते थे। तभी पास खड़ी एक गरीब बुढि़या ने माधो से पूछा, “तुम्हें क्या कष्ट है बेटा? मैं राजा की मालिन हूं।” माधो ने उसे सारी बात बताई। मालिन भी राजा की क्रूरता से बहुत दुखी थी। वह माधो को अपने घर ले गई। उसे माला गूथना सिखा दिया। फिर एक दिन उसे राजा से भी मिलवाया। राजा माधो की बनाई माला देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। वह माधो को महल दिखाने लगा। माधो ने पूछा, “महाराज, कोई शत्रु आपके महल में घुस आए तो?” राजा उसे दीवार में लगी एक मुठिया दिखाकर बोला, “अगर ऐसा हुआ, तो हम यह मुठिया घुमा देंगे। किले के सारे पानी में बेहोशी की दवा घुल जाएगी। पानी पीने वाले बेहोश हो जाएंगे। थके-मांदे शत्रु के सैनिक आते ही पानी तो पिएंगे ही।” फिर राजा ने माधो को एक बड़ी सी चाबी दिखाई और बोला, “यह चाबी देखो, इससे हम किले का दरवाजा बंद कर देंगे। होश में आने पर फिर कोई बाहर नहीं निकल सकता।” मालिन ने माधो को नागगंध की एक माला बनाकर दी। उसे पहनते ही राजा और रानी गहरी नींद में सो गए। माधो ने जल्दी ही वह मुठिया घुमा दी। फिर राजा की जेब से किले की चाबी निकालकर महल से बाहर आ गया। पानी पीते ही राजा के सैनिक बेहोश होकर गिरने लगे। गांव वाले पानी पीने दौड़े, तो माधो ने उन्हें पानी नहीं पीने दिया और फौरन किले से बाहर निकल जाने के लिए कहा। सब बाहर आ गए, तो माधो ने चाबी से फाटक को बंद कर दिया। निर्दयी राजा अपने सिपाहियों के साथ अपने ही किले में बंद हो गया। गांव वाले उसके अत्याचार से मुक्त हो गए थे