top of page

Education is fun for all ages

चतुरी बाल काटने वाले की चतुराई को भला कौन नहीं जानता? गांव तो क्या, आसपास के चार गांवों में भी उसके चर्चे आम हैं। अपनी बातों में उलझाकर वह अच्छे-अच्छों को चारों खाने चित कर देता है। चाहे कितना भी बड़ा ज्ञानी हो, सूरमा हो या चालाक, उसके सामने सब धरे के धरे रह जाते हैं। लोग कहते हैं कि जितनी तेज उसकी कैंची चलती है कच-कच, उससे तेज उसकी जुबान और दिमाग चलता है, किसी कंप्यूटर से भी तेज।  यूं ही एक दिन वह काम में लगा था, तभी चंदन बोला, “जानते हो चतुरी, हलकू ने नई भैंस खरीदी है, मुर्रा भैंस। जबसे नई भैंस आई है, उसके तो तेवर ही बदल गए। एक तो दूध में पानी मिलाता है और औने-पौने दाम भी बताता है। बड़ी हेकड़ी दिखाता है आजकल।”  “अरे भई, भैंस भी तो महंगी खरीदी है और फिर ऐसे जानवर की देखरेख भी खूब करनी पड़ती है। सर्दी-गरमी में तो खासतौर पर। उसका खान-पान भी आम भैंस से अलग होता है। फिर दूध तो महंगा होगा ही। उसमें भला हलकू की क्या गलती?” सुखिया काका ने अपने अनुभव की बात कह दी। “हां, काका, तुम्हारी बात तो सोलह आने सच है। लेकिन दूध शुद्ध दे, तब तो रुपए देने में भी कोई बुराई नहीं। लेकिन यह क्या कि पानी मिलाकर बेचो और ऊपर से धौंस भी दिखाओ। बताओ गलत तो नहीं कह रहा?” चंदन ने भी अपनी बात वजनदारी से बढ़ाई। “हां, फिर तो तुम्हारी बात ठीक है। और उसे तो अब चतुरी ही सबक सिखा सकता है। क्यों भाई चतुरी, क्या बोलते हो?” सुखिया काका ने चंदन की बात का समर्थन करते हुए गेंद चतुरी के पाले में डाल दी।  “अरे काका, यह काम चतुरी के बस का नहीं। हलकू भी अपनी बातों में माहिर है। यदि चतुरी ने हलकू को पस्त कर दिया, तो सवा किलोग्राम कलाकंद रामू हलवाई के यहां से लेकर तुरंत खिलाऊंगा।” चंदन ने ताव दिखाते हुए कहा। वह तो बस हलकू को सबक सिखाने के लिए चतुरी को तैयार करना चाहता था।  “तो बात पक्की। हार गया तो मैं खिला दूंगा। क्या कहते हो चतुरी हो जाए?” काका भी बात ही बात में जोश में आ गए। अब तक चतुरी चुपचाप सब सुन रहा था। दोनों ने शर्त चतुरी को चढ़ाने के लिए ही लगाई थी। चतुरी भी कम न था। उसने तुरंत जवाब दिया, “चलो, देखते हैं काका, शर्त तो आप दोनों ने लगाई है। जीतूं या हारूं कलाकंद तो खाऊंगा ही। बस आप लोग बीच में मत बोलना।” “ठीक है भाई जैसा तुम कहो।” दोनों ने हामी भरी। दोनों उतावले थे, चतुरी और हलकू के बीच होने वाले मुकाबले के लिए। उनको ज्यादा देर इंतजार भी नहीं करना पड़ा। हलकू दूध बांटकर साइकिल पर दोनों तरफ खाली केन लटकाए  चला आ रहा था। चतुरी ने आवाज दी, “अरे, भाई हलकू हलकैया दूध वाले भैया। बड़ी लंबी उम्र है तुम्हारी। अभी तुम्हारी ही चर्चा चल रही थी। बड़े व्यस्त रहते हो आजकल। नई भैंस क्या खरीदी, तुम तो भैंस के ही हो गए। कभी-कभार इधर का भी रुख कर लिया करो। पता चला है कि भैंस की खूब मालिश-चंपी करते हो। कभी अपना भी ध्यान रखो। देखो तो क्या हुलिया बना रखा है? तुम्हारी मालिश-चंपी तो हमें ही करनी पड़ेगी न। क्या बोलते हो?” हलकू अपनी और भैंस की तारीफ सुनकर फूला न समाया। एक तरफ साइकिल खड़ी कर चला आया दुकान के अंदर। सबसे राम-राम कर झट से बैठ गया चतुरी की कुर्सी पर। और बोला, “अरे चतुरी सही कहते हो भाई। इस जानवर ने तो दिन-रात बराबर कर दिए हैं मेरे। अब क्या बताऊं ? कब सुबह होती कब शाम, पता ही नहीं चलता। कब से सोच रहा था तुम्हारे यहां आने का। तुमने आवाज दी, तो अपने-आप को रोक नहीं पाया। लो चलो, हजामत भी बना दो और चंपी भी कर देना। तुम्हारे हाथों में तो जादू है। हाथ लगते ही तबीयत एकदम मस्त हो जाती है।” हलकू ने भी नहले पे दहला मारते हुए कहा।  अब तो जुगलबंदी शुरू हो गई थी। काका और चंदन दोनों बैठे-बैठे उनकी बातों का मजा ले रहे थे। चतुरी ने भी पैंतरा बदलते हुए कहा, “अरे, हलकू तुम तो ऐसे ही मेरी तारीफ कर रहे हो। तुम अपनी सुनाओ। सुना है खूब खिलाई-पिलाई करनी पड़ती है मुर्रा भैंस की। कितना दूध दे देती है दोनों वक्त मिलाकर?” “हां चतुरी, खिलाना-पिलाना तो खूब पड़ता है। लेकिन सब निकाल लेता हूं। दूध तो दोनों वक्त मिलाकर अभी तीस एक लीटर दे देती है।” “फिर तो खूब कमाई बढ़ गई होगी। भला क्या भाव चल रहा है अभी दूध का? तारीफ भी खूब सुनी है। मैं भी सोचता हूं तुम्हीं से शुरू कर दूं।” चतुरी ने उस्तरा चलाते हुए कहा। “हां, चतुरी, भला तुम्हें कैसे मना कर सकता हूं? दूध का भाव तो पचास रुपए लीटर रखा है। खालिस बेचता हूं। पांच लीटर तो मुखिया ही ले लेते हैं, पांच लीटर भीमू पहलवान। दस हलवाई रामू काका, दो पंडितजी के घर जाता है। बाकी आठ लीटर फुटकर जाता है। किसी को एक तो किसी को आधा लीटर। दूसरी वक्त का भी यही हिसाब है। क्या करूं, सबका ध्यान रखना पड़ता है। बस भगवान की कृपा से चल रही है दाल-रोटी।” हलकू बातों ही बातों में क्या बोल बैठा था, यह तो उसे खुद भी पता नहीं था। लेकिन चतुरी यह सब सुन मन ही मन बड़़ा खुश हो रहा था। उसने हलकू के सिर में उंगलियां फिराते हुए कहा, “हां भाई हलकू, सब उसी के भरोसे ही तो हैं।” चतुरी हजामत बना चुका था। अब उसके हाथ मालिश-चंपी के लिए चल रहे थे। दो-चार-दस हाथ घुमाकर-फिराकर हाथ झाड़कर खड़ा हो गया और बोला, “चलो भाई हलकू, लाओ मेहनताना। अब मैंने भी हजामत और मालिश-चंपी के पचास रुपए कर दिए हैं।” “हैं? क्या कहा पचास रुपए? ये कुछ ज्यादा नहीं हो गए? और हजामत भी कैसी बनाई है तुमने आज। अधकचरी सी। कहीं-कहीं तो बाल छोड़ दिए हैं। और तो और, मूंछ भी छोटी-बड़ी मिला दी। आज चंपी भी ठीक-ठाक नहीं की और कह रहे हो पचास रुपए। यह तो सरासर बेईमानी है। भला यह भी कोई बात हुई, तुम्हीं  बताओ काका।” अब तक बातों में उलझे हलकू ने जैसे ही अपना चेहरा आईने में देखा, तो चौंक गया। और कीमत सुनकर, तो भड़क ही गया। अब बारी चतुरी की थी। वह बोला, “हलकू भाई, जब तुम्हारी भैंस दोनोंे वक्त का मिलाकर तीस लीटर दूध देती है और तुम एक ही वक्त में तीस लीटर बेच लेते हो। क्या यह बेईमानी नहीं है। और इसके बाद भी तुम मुझे भी दूध देने को तैयार हो। सीधा मतलब है आधा दूध रहता है, आधा पानी। जब तुम यह कर सकते हो, तो भला मैं क्यों नहीं बस, तुम्हारी बेईमानी लोग समझकर भी कुछ नहीं कह पाते और मेरी तुम्हें दिखाई दे गई। फर्क बस इतना ही है। तुम बातों ही बातों में अपनी ही पोल खोल बैठे।” अब तो हलकू का चेहरा देखने लायक था। उसे अपनी गलती माननी पड़ी। और ये भी कहना पड़ा कि अब से दूध में पानी नहीं मिलाएगा और कीमत भी सही रखेगा। उसकी अपने ही हाथों अच्छी फजीहत हो चुकी थी। चतुरी ने उसकी फिर से सही हजामत बनाई और चंपी भी की। वह पैसे देकर चुपचाप अपनी साइकिल उठाकर जाने लगा, तो चंदन और सुखिया काका एक साथ बोले, “अरे हलकू, शर्त का कलाकंद तो खाता जा। तेरी ही भैंस के दूध से बना है।”  लेकिन हलकू कब रुकने वाला था! वह तो साइकिल उठा सरपट भागा और काका बोले, “चतुरी मान गए तुम्हारी चतुराई। क्या चारों खाने चित कर दिया तुमने हलकू को। इसे कहते हैं दूध का दूध और पानी का पानी करना।”  चतुरी तो बस धीरे से मुसकरा भर दिया।’ 

0 views0 comments

Recent Posts

See All

Advantages of friction: 1 Friction enables us to walk freely. 2 It helps to support ladder against wall. 3 It becomes possible to transfer one form of energy to another. 4 Objects can be piled up with

History of India The Indian subcontinent, the great landmass of South Asia, is the home of one of the world’s oldest and most influential civilizations. In this article, the subcontinent, which for hi

bottom of page