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कालू कौआ बहुत भूखा था। उसने इधर-उधर देखा। सामने एक लड़की रोटी खाने के लिए बैठी थी। उसने रोटी सामने रखी। अपनी सहेली को आवाज दी।  जैसे ही उसने पीछे मुंह घुमाया, वैसे ही कालू कौए ने रोटी झपट ली। वह तेजी से उड़ा और पेड़ पर बैठ गया। यह देखकर लड़की रोने लगी। वह उठकर कौए के पीछे भागी। पत्थर उठाया। कालू को दे मारा। कालू तुरंत उड़ा। दूसरे पेड़ पर जाकर बैठ गया। जिस पेड़ पर कालू बैठा था, उसी पेड़ के नीचे पूसी बिल्ली बैठी थी। उसने कालू कौए के मंुह में रोटी देख ली थी। इसलिए बोली, “कालू भाई, कालू भाई! आज अपना प्यारा राग नहीं सुनाओगे?” आवाज सुनकर कालू ने पूसी की ओर देखा। वह उसी की ओर देखकर बोल रही थी। मगर कालू चुप रहा। वह बोलता, तो रोटी मुंह से छूट जाती। “क्या गाना गाना भूल गए कालू भाई?” पूसी ने पूंछ उठाकर बड़े प्यार से पूछा। कालू फिर भी चुप रहा। वह कुछ नहीं बोला। पूसी बिल्ली ने दोबारा कहा, “क्या मेरी इच्छा पूरी नहीं करोगे?” मगर कालू चुप ही रहा। “अरे, काले कलूटे! बोलता क्यों नहीं है? मैं तो बड़े प्यार से बोल रही हूं। इधर तू है कि अपने कालेपन पर इतरा रहा है।” पूसी  चिल्लाई। कालू कौआ पूसी की कड़वी बातें सुनकर चुप नहीं रह सका। उसे गुस्सा आ गया था। वह चिल्लाकर बोला, “अरे जा! तेरे जैसे बहुत देखे हैं।”  जैसे ही वह बोला, वैसे ही उसके मुंह से रोटी छूट गई।  पूसी इसी ताक में बैठी थी। उसने झट से रोटी मुंह में लपकी और वहां से दूर भागने लगी। पूसी कुछ दूर गई थी कि सामने से टॉमी आ गया। उसने पूसी के मुंह में रोटी देख ली थी। रोटी देखकर उसके मुंह में पानी आ गया था। इस कारण वह पूसी को देखकर गुर्राया, “अरे! रुक पूसी। तू कहां भागती है? तूने कालू को बेवकूफ बनाकर रोटी छीनी है। ठहर, तूझे अभी मजा चखाता हूं।” वह भौंकते हुए पूसी के पीछे दौड़ा। टॉमी से पूसी बहुत डरती थी। उसे टॉमी के रूप में अपने पीछे मौत दौड़ती नजर आई। इसलिए उसने सबसे पहले खुद को बचाना जरूरी समझा। वह जल्दी से टॉमी से पीछा छुड़ाने का उपाय सोचने लगी। मगर उसे कोई उपाय नजर नहीं आया। वह रोटी छोड़करभाग खड़ी हुई। टॉमी को रोटी चाहिए थी। उसने झट से रोटी उठाई और भाग लिया। टॉमी बहुत खुश था। आज उसे बिना मेहनत किए ही रोटी मिल गई थी। वह सोच रहा था, ‘आज मैं ताजी-ताजी रोटी खाऊंगा।’ वह तुरंत अपने घर की ओर चल दिया।  टॉमी के घर के पास एक पेड़ था। उस पर बंटू बंदर बैठा हुआ था। उसने टॉमी के पास रोटी देख ली थी। वह सुबह से भूखा था। रोटी देखकर उसके मुंह में पानी आ गया। ‘काश! यह रोटी मुझे मिल जाती?’ यह सोचते हुए बंटू बंदर  नीचे उतरा। कुछ ही समय में वह टॉमी के सामने खड़ा था। जैसे ही वह टॉमी के सामने पहुंचा, उसने जोर से खौं-खौं किया। टॉमी ने अपने सामने अचानक बंटू बंदर को देखा, तो घबरा गया।  खूंखार बंदर को सामने देखकर उसकी घिग्घी बंध गई। घबराहट में उसके मुंह से रोटी छूट गई। बंटू बंदर यही चाहता था। वह रोटी लेकर पेड़ पर चढ़ गया। ‘अब मैं आराम से बैठकर खाऊंगा।’ बंटू बंदर ने सोचा।  उस पेड़ पर पहले से एक और बंदर बैठा था। उसने अच्छा मौका देखा। वह बंटू की ओर लपका। मगर बंटू बंदर रोटी के दो टुकड़े कर चुका था। उसने एक टुकड़ा मुंह में रख लिया। रोटी का दूसरा टुकड़ा बंटू के दूसरे हाथ में था। उसने दूसरे बंदर को देखकर अपना दूसरा हाथ ऊंचा उठा लिया, ताकि दूसरा बंदर रोटी छीन न सके। कालू कौआ यह तमाशा देख रहा था। उसने अच्छा मौका देखा। वह झट से उड़ा। उसने बंदर के हाथ से रोटी झपटी। दूसरा बंदर यह देखकर जोर से कूदा। तब तक कालू कौआ उड़ चुका था।  इस तरह कालू कौए के हाथ में आधी रोटी लग ही गई। 

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